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प्रै॒षेभिः॑ प्रै॒षाना॑प्नोत्या॒प्रीभि॑रा॒प्रीर्य॒ज्ञस्य॑। प्र॒या॒जेभि॑रनुया॒जान् व॑षट्का॒रेभि॒राहु॑तीः ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रै॒षेभि॒रिति॑ प्रऽए॒षेभिः॑। प्रै॒षानिति॑ प्रऽए॒षान्। आ॒प्नो॒ति॒। आ॒प्रीभि॒रित्या॒ऽप्रीभिः॑। आ॒प्रीरित्या॒ऽप्रीः। य॒ज्ञस्य॑। प्र॒या॒जेभि॒रिति॑ प्रया॒जेभिः॑। अ॒नु॒या॒जानित्य॑नुऽया॒जान्। व॒ष॒ट्का॒रेभि॒रिति॑ वषट्ऽका॒रेभिः॑। आहु॑ती॒रित्याहु॑तीः ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:19


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसा विद्वान् सुख को प्राप्त होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो विद्वान् (प्रैषेभिः) भेजने रूप कर्मों से (प्रैषान्) भेजने योग्य भृत्यों को (आप्रीभिः) सब ओर से प्रसन्नता करनेहारी क्रियाओं से (आप्रीः) सर्वथा प्रीति उत्पन्न करनेहारी परिचारिका स्त्रियों को (प्रयाजेभिः) उत्तम यज्ञ के कर्मों से (अनुयाजान्) अनुकूल यज्ञ-पदार्थों को और (यज्ञस्य) यज्ञ की (वषट्कारेभिः) क्रियाओं से (आहुतीः) अग्नि में छोड़ने योग्य आहुतियों को (आप्नोति) प्राप्त होता है, वह सुखी रहता है ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - जो सुशिक्षित सेवकों तथा सेविकाओंवाला साधनों और उपसाधनों से युक्त श्रेष्ठ कार्यों को करता है, वह सब को सुखी करने में समर्थ होता है ॥१९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशो विद्वान् सुखमाप्नोतीत्युच्यते ॥

अन्वय:

(प्रैषेभिः) प्रैषणकर्मभिः (प्रैषान्) प्रैषणीयान् भृत्यान् (आप्नोति) (आप्रीभिः) या समन्तात् प्रीणन्ति ताभिः (आप्रीः) सर्वथा प्रीत्युत्पादिकाः परिचारिकाः (यज्ञस्य) (प्रयाजेभिः) प्रयजन्ति यैस्तेः (अनुयाजान्) अनुकूलान् यज्ञपदार्थान् (वषट्कारेभिः) कर्मभिः (आहुतीः) या आहूयन्ते प्रदीयन्ते ताः ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यो विद्वान् प्रैषेभिः प्रैषानाप्रीभिराप्रीः प्रयाजेभिरनुयाजान् यज्ञस्य वषट्कारेभिराहुतीश्चाप्नोति, स सुखी जायते ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - यस्सुशिक्षितसेवकसेविका साधनोपसाधनयुक्तः श्रेष्ठानि कार्य्याणि करोति, स सर्वान् सुखयितुं शक्नोति ॥१९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याचे सेवक व सेविका प्रशिक्षित असतात तो साधन व उपसाधनांनी श्रेष्ठ कार्य करू शकतो आणि सर्वांना सुखी करू शकतो.